...

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तृष्णा
प्रिय!अभी रोको ज़रा, ये समय नहीं मुझे पाने का,
तुम्हारी तृष्णा का भान मुझे है,पर समय नहीं मुझे पाने का।
काश ! कभी तुम समझ पाओ कि प्रेम अर्थ नहीं किसी को पाने का।
स्वछंद बहे जो धारा जैसा जिसमें हो करुणा अपार प्रेम वहीं है जिसमें हो निस्वार्थ भाव।
समझो खुद को ऐ मेरे प्रिय वर नहीं है प्यार तुमको मुझसे ‌। बस तृष्णा है इस तन की ।

© Dr. Urvashi Sharma