आरम्भ भी यहीं से
आरम्भ भी यहीं से
प्रारम्भ भी यहीं से
हो जगत्गुरू, ये सबको ज्ञान दो
मौत पे विजय हुई,कर्म से ही जय हुई
हो सत्य का ही साथ, इसका ध्यान दो
वन्दना नहीं है ये, सीखना यहीं से है
धर्म को भी कुछ, उसका मान दो
सूर्य नभ में है अभी, दिख रहा प्रकाश भी
हो सके तो रोशनी का साथ दो
दर्द में डिगा नहीं, जो काल से डरा नहीं
अभिमान अपना उसपे ही वार दो
प्रारम्भ भी यहीं से
हो जगत्गुरू, ये सबको ज्ञान दो
मौत पे विजय हुई,कर्म से ही जय हुई
हो सत्य का ही साथ, इसका ध्यान दो
वन्दना नहीं है ये, सीखना यहीं से है
धर्म को भी कुछ, उसका मान दो
सूर्य नभ में है अभी, दिख रहा प्रकाश भी
हो सके तो रोशनी का साथ दो
दर्द में डिगा नहीं, जो काल से डरा नहीं
अभिमान अपना उसपे ही वार दो