...

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!! मै प्रेम भँवर के बीच हूँ !!

नदियों की लहरों में अल्हड़ सी रवानी हैं
जवाँ रात की तन्हाई में प्रीत की कहानी हैं

सदियों से रिश्ता हैं गगन और धरातल का
चांद से चांदनी का, बिजली से बादल का

हवाओं में फूलों की खुशबू घुलती जाती हैं
कलियों के खिलने पर उन्मुक्त हो जाती हैं

बेकल प्रेम की चाहत तब सरेआम होती हैं
जब उड़ती हुई धूल शाखाओं तक जाती हैं

प्रकृति ने आँचल में कितने ही रंग सामाए हैं
परंतु प्रेम के रंग सा मुझे कोई रंग ना भाए हैं

प्रेम सुधा से हृदय मेरा सिंचित हो जाता है
जब प्रेम में पड़कर प्रेम अनुभव कर पाता हैं।