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मायका.....
बचपन जहां बिताया था
वो ठिकाना अपना नहीं लगता
मां पापा अपने लगते हैं मगर
मायका अपना नहीं लगता।
आंगन देहरी और दरवाजे
सभी नए से हो गये अब
वो घर ऐसा बदल गया कि कोई
कोना पहचाना नहीं लगता।
मां-पापा ,भैया-बहन
सबकी पलकों पर रहती थी
छोटों को इतना प्यार मिले अब
वो जमाना नहीं लगता।
बचपन जहां बिताया था
वो ठिकाना अपना नहीं लगता
मां पापा अपने लगते हैं मगर
मायका अपना नहीं लगता।।
© Dr. Rekha Bhardwaj
वो ठिकाना अपना नहीं लगता
मां पापा अपने लगते हैं मगर
मायका अपना नहीं लगता।
आंगन देहरी और दरवाजे
सभी नए से हो गये अब
वो घर ऐसा बदल गया कि कोई
कोना पहचाना नहीं लगता।
मां-पापा ,भैया-बहन
सबकी पलकों पर रहती थी
छोटों को इतना प्यार मिले अब
वो जमाना नहीं लगता।
बचपन जहां बिताया था
वो ठिकाना अपना नहीं लगता
मां पापा अपने लगते हैं मगर
मायका अपना नहीं लगता।।
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