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मौन समर्पण
मेरे मौन समर्पण को
मेरी कमज़ोरी मत कहना
मैं आज के युग की नारी हूँ
कल की अबला मत समझना
न रुकना है ना थकना है
निरंतर चलते रहना है
मेरे किसी पड़ाव को
मेरा अंतकाल ना समझना
ये कुछ क्षण का विश्राम है
देता पल भर आराम है
तुम कहते हो मैं अबला हूँ
लोग कहें जगदंबा हो
सारे घर को तुम चलाते
मैं भी तो रथ का पहियां हूँ
मेरे क्षणभर रुकने को
पूर्ण विश्राम ना समझना
मेरे मौन समर्पण को
मेरी कमज़ोरी ना कहना …..
© गुलमोहर
मेरी कमज़ोरी मत कहना
मैं आज के युग की नारी हूँ
कल की अबला मत समझना
न रुकना है ना थकना है
निरंतर चलते रहना है
मेरे किसी पड़ाव को
मेरा अंतकाल ना समझना
ये कुछ क्षण का विश्राम है
देता पल भर आराम है
तुम कहते हो मैं अबला हूँ
लोग कहें जगदंबा हो
सारे घर को तुम चलाते
मैं भी तो रथ का पहियां हूँ
मेरे क्षणभर रुकने को
पूर्ण विश्राम ना समझना
मेरे मौन समर्पण को
मेरी कमज़ोरी ना कहना …..
© गुलमोहर
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