...

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बसेरा
काफ़ी सालों से
मां बाबा का मकान
हमारा घर था।
उन्होंने किसी कारण
अभी दूसरा मकान खरीदा,
अब ये घर
खाली करने की बारी थी।
पहले तो मां
ठीक जैसे मेरी विदाई पे रोई थीं,
वैसे रोई।
फिर सभी घरवाले इस घर में
एक साथ आखिरी चाय पे बैठे।
किसी के गुज़र जाने के बाद की चर्चा से
अगर आप परिचित हैं,
तो ठीक वैसी चर्चा चलती है
जब बहुत पुराना बसेरा
छोड़ना होता है।
मां आंसू पोछतें हुए बता रही थी
कि कैसे ये घर उनके लिए बहुत लकी रहा।
बच्चे पढ़े,
सबने नौकरी पाई,
शादियां हुई,
नाती पोते देखे।
बोलते बोलते
गला भर आता है उनका।
हर घर मकान नही
परिवार होता है,
ये जीता है आपके
सारे सुख दुख
यूंही नही कहते
दीवारों के कान होते हैं
इसने हमारी
धड़कने भी सुनी,
मुस्कान देखी है
ये रोया है कितनी रातें
हमारे संग
इसे छोड़ते हुए,
कुछ छूट गया अपना
इसके संग।
© Atul Mishra
#kalammishraki