शीर्षक - प्रेम चरित्र।
शीर्षक - प्रेम चरित्र।
दिखती नहीं किसी में सीता,
न कोई अब यहाँ राधा रही।
बचा ही नहीं कृष्ण किसी में,
नहीं राम सी अब मर्यादा रही।
मीरा सी नहीं फ़िरती कोई,
राम सा नहीं कोई ढूँढता है।
पल भर में बदलते सम्बंध,
आत्म कहाँ अब जुड़ता है।
ख़त्म हुए सारे नाते-बंधन,
प्रेम चरित्र सबसे मैला हुआ।
पवित्रता...
दिखती नहीं किसी में सीता,
न कोई अब यहाँ राधा रही।
बचा ही नहीं कृष्ण किसी में,
नहीं राम सी अब मर्यादा रही।
मीरा सी नहीं फ़िरती कोई,
राम सा नहीं कोई ढूँढता है।
पल भर में बदलते सम्बंध,
आत्म कहाँ अब जुड़ता है।
ख़त्म हुए सारे नाते-बंधन,
प्रेम चरित्र सबसे मैला हुआ।
पवित्रता...