...

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बिन तेरे
साथ हमको तुम्हारा गंवारा नहीं
बिन तुम्हारे लेकिन गुजारा नहीं।
खुदा से भी न शिकायत हमको रही
कश्तियों को मिला क्यों किनारा नहीं।
साफ करते रहे सबकी दहलीज जो
घर का आंगन ही अपने बुहारा नहीं।
लौट आते तेरी एक आवाज पर
कभी दिल से हम को पुकारा नहीं।
देखकर आईना भी हमको ये कहने लगा
थी कोई कमी जो उसने निहारा नहीं।
उम्र भर रोते अक्सर वही लोग हैं
नाप चादर जिन्होंने पांव पसारा नहीं।
जो बदल सकता था किस्मत तुम्हारी
क्या मिला आज तक वह सितारा नहीं।