अपनी पहचान बनाऊंगी
*अपनी पहचान बनाऊंगी*
बड़ी ही इज्जत से, हमने उसको बुलाया था
न जाने वो किसे देखने, हमारे घर आया था
शायद उसे न थी, हमसफर की कोई जरूरत
उसकी नजरों में थी, गुनहगारों जैसी हरकत
तमीज और तहजीब का, उसे न था लिहाज
पहन रखा था सर पर, बेशर्मी का बड़ा ताज
मुझे समझा उसने, बिस्तर का एक खिलौना
इंसान की शक्ल में, शैतान था बड़ा घिनौना
मेरी नुमाइश हो रही थी, मेरी मर्जी...
बड़ी ही इज्जत से, हमने उसको बुलाया था
न जाने वो किसे देखने, हमारे घर आया था
शायद उसे न थी, हमसफर की कोई जरूरत
उसकी नजरों में थी, गुनहगारों जैसी हरकत
तमीज और तहजीब का, उसे न था लिहाज
पहन रखा था सर पर, बेशर्मी का बड़ा ताज
मुझे समझा उसने, बिस्तर का एक खिलौना
इंसान की शक्ल में, शैतान था बड़ा घिनौना
मेरी नुमाइश हो रही थी, मेरी मर्जी...