जज़्बा और जुनून
ये कविता मैने 2022 में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर लिखी थी।
ये लहू में होता है जज़्बा ओ जुनून जीतने का
ये धमनियों में बहता है साहस का सागर
ये ना हो सका है ना हो पाएगा कभी
के कांटे आपके राह के हटायेगा कोई
बहुत आते हैं मदद के हाथ सफ़र मे
बहुत लोगों के मिलते हैं साथ सफ़र में
मगर जो मील का पत्थर है वो वहीं रहेगा
अंजाम ए सफ़र तक सहारा कोई नहीं रहेगा
ये हल्की हल्की सी ख्वाहिशें
ये दबा-दबा हुनर कैसा
ये सहमी-सहमी सी मेहनतें
ये हारा हुआ जिगर कैसा
बढ़ चलो ज़िन्दाबाद होके अपने मैदान-ए-जंग में ...
ये लहू में होता है जज़्बा ओ जुनून जीतने का
ये धमनियों में बहता है साहस का सागर
ये ना हो सका है ना हो पाएगा कभी
के कांटे आपके राह के हटायेगा कोई
बहुत आते हैं मदद के हाथ सफ़र मे
बहुत लोगों के मिलते हैं साथ सफ़र में
मगर जो मील का पत्थर है वो वहीं रहेगा
अंजाम ए सफ़र तक सहारा कोई नहीं रहेगा
ये हल्की हल्की सी ख्वाहिशें
ये दबा-दबा हुनर कैसा
ये सहमी-सहमी सी मेहनतें
ये हारा हुआ जिगर कैसा
बढ़ चलो ज़िन्दाबाद होके अपने मैदान-ए-जंग में ...