...

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मै भी लिखती हूं
शब्दो का ज्ञान कम है
पर ये जो आंखे नम है
इन्होंने सिखाया लिखना
मुझे , दोहे ,छंद , चौपाई
तुकांत से सब कहा मुझे
आते हैं , समेट लेती हूं अपने
जज़्बात वही शब्द बन जाते
है।
कभी कही जो गई घूमने तो
वहा के नजारे आंखो में बस
जाते है , फिर आंखो के ज़रिए
इन कागजों में भर जाते है ,
यही तो यात्रा वृत्तांत कहलाते
है,

जब कभी मां की याद आती
लिखने बैठ जाती हूं , उनके
नाम एक पत्र प्यार का,तो कभी
भगवान के सामने शिकायतो
का पिटारा खोल बस लिखती
जाती हूं,

पापा का रूखापन मां की
कमी , खुशी की घड़ी , दुख
के बादल , अंधेरे में टूटे जज़्बात
बिखरे ख्वाब , कुछ ख़ास
नही बाकी कवियों सा पर मै
भी लिखती हूं ........

शायद कोई समझे जज़्बात मेरे
इस आश में लिखती हूं ,
हां मैं भी लिखती हूं ।

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