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किसान की व्याकुलता( मौसम का बदलाव)
नभ में ये काले बादल जो घनघोर घटा करने हैं लगे,
चाहूं और प्रबल वायु के झोंके अब तेज गति से बढ़ने हैं लगे,
आज प्रातः के ये दृश्य निराले मन को चिंतित करने हैं लगे,
आसमां से गिरती ये बूंदे हिम का स्वाद देने हैं लगी,
कहीं प्रबल वेग से ये बूंदे वसुधा पर जो गिरने को लगीं,
हो जाएगा बहू अनर्थ बड़ा अन्नदाता को उत्सुकता बढ़ने लगी,
है फसलों की बर्बादी बड़ी इन सब को ये है लगने लगा,
हो गया स्तब्ध किसान ये मन में रातों को भी है जगने लगा,
कर जोड़ प्रार्थना के जरिए मन ही मन इसने ईश्वर से बात किया,
हे विधना क्या गलती की हमने जो तुने ये उत्पात किया,
© ✍️Writer-S.K.Gautam1346