...

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"धीरे धीरे"

मौसम बीते कई मगर ये सावन बीते धीरे धीरे
रात कटे न तेरे बिन ये दिन भी बीते धीरे धीरे

इश्क में तेरे तड़पा हु मैं, मुझसे दूर गई हैं तू जो
हरदम रोया दिल है मेरा सिसक सिसक धीरे धीरे

सपनों में तुम आई थी जब हल्की सी मेरी आंख लगी
आंख खुली तुम साथ नही तब नैन बहे मेरे धीरे धीरे

प्यार के कोरे कागज़ पर मेने बस दो बात लिखी
उसका भी दिल कहर उठा फिर कहा कहर कहर धीरे धीरे

मै हु पागल तू थी पागल पर मैं पागल बनकर ठैहरा हूं
बीत गया तेरा पागलपन,पर तेरा दीवानापन करे पागल मुझे धीरे धीरे

चूड़ी कंगना बिंदिया उसे तू पायल की छनकार सुना
वो भी मुझसे उब से गए है अब नए यार बना तू धीरे धीरे

© _Ankaj Rajbhar 🥺