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बेख़ुदी ✒
"हर बार जुल्फ़ों में सिमटकर सुलझ जाता है हमसे,
गाढ़ी नींद, पहलू में समाते ही  छूट जाता है हमसे।

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ख़्यालों से निकलकर जो हक़ीकत में मिले गए हो,
जो हरसू तू दिखे, प्रेम का गागर फूट जाता है हमसे।

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सम्भाल लिया तुमने हमें अपनाकर खुशकिस्मत हूँ,
सब्र की बात ना करो मुहब्बत  लुट जाता है हमसे।

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जग को भूल गई मैं दिन रात तेरी ही धुन में जीती हूँ,
जो दूर गर जाऊँ ,जुनूँ चाहत की रूठ जाता है हमसे।

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राब्ता जुड़ा  ऐसा तुमसे की जीने की तमन्ना जागती,
अंधेरा मिट गया है जबसे हर दर्द कूट जाता है हमसे।

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भर गए सारे जख़्म अपने, तुमने जो मरहम लगाया,
पाकर बेख़ुदी में सब्र का ये बांध टूट जाता है हमसे।।"
©Saiyaahi🌞Rashmi✍

© Saiyaahi🌞✒