बेख़ुदी ✒
"हर बार जुल्फ़ों में सिमटकर सुलझ जाता है हमसे,
गाढ़ी नींद, पहलू में समाते ही छूट जाता है हमसे।
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ख़्यालों से निकलकर जो हक़ीकत में मिले गए हो,
जो हरसू तू दिखे, प्रेम का गागर फूट जाता है हमसे।
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सम्भाल लिया तुमने हमें अपनाकर खुशकिस्मत...
गाढ़ी नींद, पहलू में समाते ही छूट जाता है हमसे।
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ख़्यालों से निकलकर जो हक़ीकत में मिले गए हो,
जो हरसू तू दिखे, प्रेम का गागर फूट जाता है हमसे।
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सम्भाल लिया तुमने हमें अपनाकर खुशकिस्मत...