है नमन..
बासन्ती चोला ही जिनकी
दुल्हन बनकर आई थी!
इंकलाब के नारे ने वहीं
जन-जन में अलख जगाई थी!
पराधीन देश की तोड़ने बेड़ियां
संकल्प भारी उठाया था !
आज़ादी का चूनर ओढ़ाने
स्वयं को आहुति में जलाया था!
सुखदेव भगत राजगुरु ने
स्वयं ही चुना था अपना कफ़न!
हंसते-हंसते झूले फंदे में
अंतिम श्वाश का था उन्हें नमन!
सोचकर देखो हे नवयुवकों!!
क्या देश की रक्षा फर्ज़ नही?
अमर शहीदों के लहु का
क्या हम पर कोई कर्ज़ नही?
मिलकर चलो ये शपथ उठाएं
करें सर्वत्र ये एलान!
अखंड रहेगा देश हमारा
अखंड रहेगा हिंदुस्तान!!
मीना गोपाल त्रिपाठी
दुल्हन बनकर आई थी!
इंकलाब के नारे ने वहीं
जन-जन में अलख जगाई थी!
पराधीन देश की तोड़ने बेड़ियां
संकल्प भारी उठाया था !
आज़ादी का चूनर ओढ़ाने
स्वयं को आहुति में जलाया था!
सुखदेव भगत राजगुरु ने
स्वयं ही चुना था अपना कफ़न!
हंसते-हंसते झूले फंदे में
अंतिम श्वाश का था उन्हें नमन!
सोचकर देखो हे नवयुवकों!!
क्या देश की रक्षा फर्ज़ नही?
अमर शहीदों के लहु का
क्या हम पर कोई कर्ज़ नही?
मिलकर चलो ये शपथ उठाएं
करें सर्वत्र ये एलान!
अखंड रहेगा देश हमारा
अखंड रहेगा हिंदुस्तान!!
मीना गोपाल त्रिपाठी