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आईना
वो खुला- खुला आसमान वो खुली- खुली फिजायें आंखों से झलकता प्याला निखरा हुआ उजाला छू न सका सूनापन अठखेलियों का मधुर दौर दौड़ती, उछलती, कुलाचें मारती इच्छायें भींगा -अक्स टूटा-शक्स आज किस मधुरिमा में खोया ? आज किस सुनहरे आलोक में डूबा?
© Pramod Kumar