...

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प्रेम कहानी
न होठो पे लाली न माथे पर बिंदिया न काजल आखों में डाली थी
इश्क मोहब्ब से बिल्कुल बेखबर अपने मन की मतवाली थी

नदियों सी मुझमे उमंग तरंग मन मस्त हवा निराली थी
लहरों की तरह बहती फिरत ,बेफिक्र पुष्प की डाली थी

मिल गया पथिक कोई राह में पहचान नई बना डाली
आखों में काजल माथे बिंदिया सज गई होठ पर गहरी लाली

हथों पर उनके नाम की मेंहदी हमने भी रंग डाली थी
सिंदूर सजा कर माथे पर उसने छटा छवि बदल डाली थी

Rupali Shrivastav


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© Rupali Shrivastav