...

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मेरा मन....
कहते हैं कि ये मन अथाह समुंदर है,
ख़्यालों की लहरें आती हैं जाती हैं,
फिर क्यों अचानक ये मन ख़ामोशी के और गहरे समुंदर में डूब जाता है?
लिखने को हज़ारों एहसास हैं,
फिर क्यों मन में वो एहसास नहीं आता है,
जिसको लिख कर असीम शांति का अनुभव कर पाउँ,
खुद भी प्रसन्न चित रहूँ,
पढ़ने वालों को भी हर्षाऊँ।
जाने ये मन क्या चाहता है?
क्या इस मन की उधेड़ बुन का कोई अंत है?
क्यों ये खालिपन सदियों से इंसानी मन में जीवंत है?
जब तक मन का गणित समझ पाऊँगी,
किसे पता दुनिया में रहूँगी या चली जाऊँगी।
कुछ लेना नहीं औरों से ,मुझे खुद के मन को समझना है,
के मन का ये अलहड़पन और नहीं झेला जाता है।
सूख क्यों जाते हैं वो फूल,
जिन्हें खिलना है मेरी कलम से,
शायद ये सच है या फिर निकलते हैं ये भ्रम मेरे ही मन से,
मन का दाव पेच मन ही नहीं समझ पाता है,
अचानक ये मन ख़ामोशी के समुंदर में डूब जाता है।
kya aap apne mann ko samajhte hain?😇
© Haniya kaur