...

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ashiq ka pyar kavi ki kalpna















किस्सा कहूं चांदनी रात का
मोहब्बत भरे दिल के जज्बात का
खिली हुई थी चांद की चांदनी
रात गा रही मधुर रागिनी
ए चांद ना निकला कर कमबकत
यू खिल के याद आता है कोई अपना तेरी
सूरत देख के
ए चांद है तू बड़ा खुशनसीब
साथ हैं तेरे तेरी हमनशी
तेरी चांदनी के ही जैसी हंसी मेरी दिलरुबा थी मेरी ज नशीन छोड़ के मुझको चली है गई
किस्सा हुआ कुछ यूं था शुरू
मोहब्बत का उसकी चढ़ा था शुरूर
आशिक हुआ था में उसका हुजूर
बफा पे था उसकी मुझे था गुरुर
दिल के इस सौदे में धोखा मिला
किससे करूं अब मैं अपना गिला
किस्सा है ये आशिक के हालात का
मोहब्बत भरे दिल के जजवात का