स्वयं से प्यार
निस्वार्थ प्रेम, व सेवा भाव को,
अक्सर ग़लत ही समझा जाता है,
कभी कमजोरी,कभी बेवकूफी समझ,
सामने वाला, फायदा उठाता है...,
परोपकार,और दूसरों से प्यार.........,
अच्छा है, किन्तु करो सदैव सुपात्र से,
धोखा खाकर अपनों से,,......
आहत मन... संभले, फिर मुश्किल से,,
जो व्यवहार उचित नहीं दूसरों के साथ,
करो नहीं कभी स्वयं से,,…
संवेदनाएं जैसे दूसरों के प्रति हैं,
वैसी ही रखो सदा स्वयं से,…..
यदि स्वयं से प्यार करें ना...,
तो कौन... हमें प्यार करेगा..,
यदि स्वयं का सम्मान करें ना,
तो कौन... हमारा...