स्वयं से प्यार
निस्वार्थ प्रेम, व सेवा भाव को,
अक्सर ग़लत ही समझा जाता है,
कभी कमजोरी,कभी बेवकूफी समझ,
सामने वाला, फायदा उठाता है...,
परोपकार,और दूसरों से प्यार.........,
अच्छा है, किन्तु करो सदैव सुपात्र से,
धोखा खाकर अपनों से,,......
आहत मन... संभले, फिर मुश्किल से,,
जो व्यवहार उचित नहीं दूसरों के साथ,
करो नहीं कभी स्वयं से,,…
संवेदनाएं जैसे दूसरों के प्रति हैं,
वैसी ही रखो सदा स्वयं से,…..
यदि स्वयं से प्यार करें ना...,
तो कौन... हमें प्यार करेगा..,
यदि स्वयं का सम्मान करें ना,
तो कौन... हमारा सम्मान करेगा,
यदि हम स्वयं को प्रोत्साहित करें ना,
तो कौन... हमें प्रोत्साहित करेगा,
यदि हम स्वयं को उत्साह से भरें ना,
तो कौन... हमें उत्साह से भरेगा,
कौन!! समझ सकता है?,
हमारे मन में कैसे भाव उमड़ते हैं,
कौन!! समझ सकता है?,
हमारे मन में कैसे प्रश्न उलझते हैं,
अपनी सच्चाई का आंकलन,
हम स्वयं कर सकते हैं,
अपने मन की गहराई भी,
हम स्वयं ही समझ सकते हैं,,
अक्सर हम स्वयं पर,
भरोसा स्वयं खो देते हैं,,
इसलिए दूजों के आगे,
रोना स्वयं रो देते हैं,
कोई किसी को आगे बढ़ाने नहीं आता,
सबका अपना-अपना जीवन है,
जान गया जो इस रहस्य को,
वो सब पाने में सक्षम है.........,
अपने जीवन की बागडोर स्वयं,
अपने हाथों में लो,
अपने भाग्य के निर्माता स्वयं बनो,
अपने सूर्य स्वयं बनो,अपने प्रेरणा स्रोत स्वयं बनो,
संवेदनाएं निधि भारतीय 🙏
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