...

33 views

सत्ता परिवर्तन
प्रियवर मेरे जब तुम नहीं थे -
झगड़ते हुए मुझसे झाड़ू और
रगड़ते हुए पोंचे ने एक दिन
मुझसे पूंछा ,"और कैसे हो ?"
गुथ्थम-गुथ्था करता रहा आटा ;
मुँह चिढ़ाती रहीं रोटी और
गाल फुलाता रहा परांठा !
वो बेरहम प्याज भी रुलाके
बोला आज ,"कहो प्यारे,
बज रहा है अकेले
ज़िन्दगी का साज़ !
नन्ही-सी मिर्ची ,
ले करके मुझसे चुस्की ;
दे गई प्रियवर
एक लंबी-सी सिसकी !
मच्छर भी काटकर कानों में
गुन-गुना जाते थे मेरे -
अकेले रहना है रिस्की ,
और पी लो व्हिस्की !
चौकी और बेलन की
रोज होती थी खटपट !
फिर भी वे दोनों
मिल बैठते थे झटपट !
कपड़ों ने पलंग पर
कर लिया था कब्जा !
किताबें, बैठके कुर्सी पर
मांग रही थीं रूह-अफ़्जा !
चप्पल और जूतों ने
घर को बनाया था अखाड़ा !
दीवार घड़ी भी जब-कब
पढ़ा जाती थी पहाड़ा !
ये छोटा-सा रुमाल भी प्रियवर ,
जब -तब करता था कमाल !
कभी खेलता था आंखमिचौली ,
कभी करता था धमाल !
कभी कंघी, कभी जुराबें
हो जाती थीं नौ-दो ग्यारह !
महरी और धोबन के
रोज़ होते थे पौ-बारह !
कोई कहता था मुझको दुखिया ;
कोई कहता था -बेचारा !
खिड़कियां पड़ोसन से
करने लगी थीं आंखें चार !
अपने 'क्लिंटन' का भी प्रियवर
बिगड़ गया था व्यवहार !
वो मेरी प्यारी कलम
जिस पर करता था मैं नाज़
झल्ला कर मुझसे बोली -
बाज़ आ जाओ बाज़ !
मुझको मालूम नहीं था ,
छिपाये हैं तुमने
मुझसे इतने सारे राज़ !
बाज़ आ जाओ बाज़ !
खाने को दौड़ता था घर ;
ऐ मेरे प्रियवर,
जब तुम नहीं थे !
चिंघाड़ते थे दरवाजे और
फटकारते थे मुझको कपड़े,
और रसोईघर में कीर्तन
करते हुए बर्तन ;
सभी मुझसे मांगते थे--
सत्ता -परिवर्तन !!

© Brijendra Kanojia