...

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एक बात थी...
एक बात थी,
इजाजत हो तो बोल दु क्या?
तुम्हे एतराज़ ना हो तो,
इश्क करने का गुनाह आज मैं कर दु क्या?
कलम से कागज पर ,
ग़जल लिखती आ रही हुं।
तुम इन्कार ना करो तो ,
तुमसे इश्क कर लुं क़्या ?
न जाने दिल‌ खामोश सा रहता है,
अपने आप में गुमसुम सा लगता है।
तम्हारी इजाजत हो तो ,उसे इन्तज़ार करने दु क्या ?
तुम्हारी इख़्तियार हो तो,
तुमसे मोहब्बत कर लुं क़्या?
© sakshi