...

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गजल - १०
दूर तक ढूंढती रही उसको मेरी नज़रें
वो तो भूल जाने का हुनर रखता है !

जाने कितने राज़ है उसके दिल मे
गम में वो मुस्कुराने की हुनर रखता है !

कैसे बहकने से खुद को अब रोकूँ मैं
वो होंठो से जाम पिलाने की हुनर रखता है !

उसको आवाज दूँ या उससे लिपट जाऊं मैं
वो दूरियों में भी तड़पाने का हुनर रखता है !

भींगता रहता है आँसू में मेरा ये बदन
वो पानी मे आग लगाने की हुनर रखता है !

इतना आसान कहाँ है उसको भूल जाना
वो दिल मे आने जाने का हुनर रखता है !

आंख लगती ही नही वो चला आता हैं
वो ख्वाबो में हक़ जताने का हुनर रखता है !

मेरे मासूम दिल से रोज खेलता था वो
वो बेवफ़ाई को वफ़ा बनाने का हुनर रखता हैं !

शम्स को भी उसने दामन मे छुपा ही लिया
वो दिन को रात बनाने का हुनर रखता है !

मेरी हर शाम की बुझा हुआ चिराग है वो
वो खामोशी से दिल जलाने का हुनर रखता है !!


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