कसक ( कविता )
बेचारी नही , तुम शक्ति पूण॔ नारी हो
तुम उगते सूरज की नही, किरण
तुम चँदा की हो चाँदनी
प्रिय , तुम खुद ही मे क्यो सिमट रही
क्या...
तुम उगते सूरज की नही, किरण
तुम चँदा की हो चाँदनी
प्रिय , तुम खुद ही मे क्यो सिमट रही
क्या...