...

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तेरी मोहब्बत मेरा वहेम था
तेरे नखरों के आगे मेरा दिली जज्बात शायद थोड़ा कम था,
इसलिए आजतक जिसे मोहब्बत समझता आ रहा था मैं, वो मेरा सिर्फ एक वहेम था।

मैं भी बेवकुफ कितना तेरे दिल्लगी को दिल की लगी समझ बैठा था,
जबकि तुने ऐसी कोई बात कही ही न थी मुझसे... बस तेरी अदाओं पे ये दिल तड़प उठा था,
पहले पहले तो तुझसे छिड़ी पहल और मेरे ऐतबार के दरमियान मेरी आंखों में छिपा बड़ा शर्म था;
पर क्या फायदा आजतक जिसे मोहब्बत समझता आ रहा था मैं, वो मेरा सिर्फ एक वहेम था।

हमेसा से मैंनें, अपनी हर तहरीक और...