...

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लिखना जो चाहूं ✍️
खुद ......❤️को ......

लिखना जो चाहूं शब्द कम

पड़ जाते है ............

अक्सर रात के अंधेरे में
सब से छुपकर

हम रो कर
सो जाते है ........

कहने की कोशिश तो बहुत

करते हैं हम पर कह नही

पाते हैं .... जैसे जमती है

बर्फ सर्दियों में ठीक वैसे ही

हमारे लफ्ज़ जम जाते है

लिखना जो चाहूं खुद को

शब्द कम पड़ जाते है ....

ना जाने क्यों? इन आंखों

में आंसू आ जाते है ….....

लिखते है हम पर किसी को

दिखाने से कतराते है

इसलिए अक्सर खुद के लिए

जज़्बात खुद को ही सुनाते हैं

या फिर इन्हें कचरे में फेंक आते हैं।

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