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पिता से है मेरी पहचान ॥

है पैर ज़मीन पर मगर छूना है आसमान
पंछी जैसे उड़ना है मेरे अरमान
दिन आया मेरी प्रतिभा का हुआ एल्हान
आज इस सफलता के असली हक़धार से सब है अनजान ।

ज़िंदगी के प्रशिक्षण में आया एक नया इम्तेहान
हाथ थामा पिता ने जब मन में था डर का तूफ़ान
आज जब मेरी क़ाबिलियत का हुआ सम्मान
हुई फक्र से छाती छोड़ी क्यूँकि पिता से है मेरी पहचान ॥

जब लड़ाकू विमान से हुई मेरी पहचान
नयी परीक्षा आरम्भ हुई और एक नया इम्तेहान
वक्त बीता और कामयाबी की सीडी पे था सब का नाम
लेकिन पिता के नाम से हुआ मेरा पूरा कल्याण ।

बचपन की याद आयी एक दास्ताँ
जब मेरा विमान छुआ नीला आसमान
सोच में डूबा यह परिदृश्य देखा कहा
तब याद आया उनका कंधा और यह सुंधर सा जहान ।

लाखों लोगों में हुआ जब मेरा सम्मान
तालीयों की गूंज में पुकारा गया मेरा पूरा नाम
अशोक छिन्न मिला और आँखों में थी शान
फक्र से सर ऊँचा हुआ क्यूँकि पिता से हयी मेरी पहचान ॥

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