...

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इश्क इंतज़ार है...
#इंतज़ार
यूं तो एक, दो, तीन कई नाम हैं तुम्हारे,
मुझसे पूछो तो मेरे लिए सिर्फ़
इंतज़ार हो तुम.

याद है, जब मिले थे हम,
दिल-दिमाग जैसे अनजान थे,
एक-दूसरे से.
तुम्हें लेकर दोनों में दोस्ती हो भी नहीं सकती कभी,
क्योंकि मेरी राह दिल की थी
और रहेगी,
तभी तो तुम्हारा इंतजार था और रहेगा.

तुम भी तो मन के मुसाफ़िर हो,
दिमाग़ की सड़क पर,
तुम भी तो गए नहीं कभी,
मिलने की मुझसे
खुशी तुम्हें भी क्या कम थी!
लगा अब इंतज़ार खत्म हुआ,
पर जाने कब दिमाग आगे निकल गया दिल से,
जैसे दिल ने आवाज़ ही देना
बंद कर दिया दोनों को,
दिमाग गिनाने लगा,
दिल की खामियां,
वो भूल गया, दिल तो तुम्हीं हो.

आओ ना, फिर से मन की सुनते हैं
जो काग़ज़ों पर लिखा गया वो हम-तुम नहीं,
वो बस काग़ज़ की दीवारें हैं,
गिरा देते हैं,
मैंने देखा है तुम्हें, उन दीवारों से झांकते हुए,
चलो! दिमाग को उन्हीं काग़ज़ों का धुआं दिखा देते हैं.

आ भी जाओ बाहर,
तुम्हें पता है, मन की सड़क अब भी है गीली ,
दोनों ने जान लिया, ये नमी नहीं सूखेगी कभी,
आओ, दिमाग़ को पीछे धकेलते हैं,
मिल के बिछड़े, बिछड़ के मिलते हैं,
पता है इश्क़ इंतज़ार है,
मंज़ूर है ये हमें,
पर अब इंतज़ार से थोड़ा आगे बढ़ते हैं...
@saileshkumarmaura
@hidden poetry





© sang