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Mann ka पतझड़
भले आ गई है ऋतु बसंत की
पर मेरे मन मे अभी पतझड़ चलती है ।
पौधों पे नये फूल आने लगे है
मेरे दिल मे एक एक पत्ते बिखर रहे है।
चिड़िया और भवरे अब शोर मचाने लगे है
अंदर पड़े सन्नाटे मुझे अब भी कुरेद रहे है।
पानी खाद सब डाल रखा नई फसल के लिए
ये बंजर यादों की मिट्टी रेगिस्तान बन रही है।
© All Rights Reserved
पर मेरे मन मे अभी पतझड़ चलती है ।
पौधों पे नये फूल आने लगे है
मेरे दिल मे एक एक पत्ते बिखर रहे है।
चिड़िया और भवरे अब शोर मचाने लगे है
अंदर पड़े सन्नाटे मुझे अब भी कुरेद रहे है।
पानी खाद सब डाल रखा नई फसल के लिए
ये बंजर यादों की मिट्टी रेगिस्तान बन रही है।
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