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औरत मन
दुनियाँ के रिवायतों में फंसी जान जाने क्यों निकल नहीं जाती।
उसूलों की गठरी बाँधी करिहाँव की कमर कसी भी नहीं जाती।।

औरत की क़लम! कितना कुछ कहना चाहती है दुनियाँ वालों।
देखी लाचारी क्यों उसकी धमक तुम्हें हनक देखी नहीं जाती।।
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