...

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इतिहास
ना महसूस कर सकते है,
ना कर पाओगे चाहे कोशिश कितनी कर लो,
देश के बटवारा में बहा वो ख़ून खराबा,
जाने कितने जले, खेत, घर,
कितने जले जींदे इन्सान कई,
कितने गायब हुए अपने कई,
मां बहन की इज्जत लूटना या गायब होना या मर जाना या अपनों से बिछड़ जाना,
या अपनों को मारते हुए यूं ही छोड़ जाना,
लाशों का यूं ही बेहाल पड़े रहना,
रेल गाड़ियों का इतना भर जाना की जागह नहीं है किसी के लिए उनमें ,
फिर भी उसने लोगो का आते जाना,
ऐसे कितने सैकड़ों रूह को जला देने वाले पल,
किसने किया ये दोष हमेशा मुस्लिम कोम पर मड़ देना,
क्यूंकि तब भी और आज भी आतंकवादी जात से मुस्लिम ही है या तब के वक्त में शुरू किसी मुस्लिम ने किया या हिन्दू ने किया ? ये कौन जानता है?
इसका मतलब ये नहीं हम जिमेदर इन्हे बना दे सबका,
किसी एक...