...

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होली
क्यों बोध नही होता जग को,
इस पावन सतरंगी होली का।
सब भेदभाव मिट जाते पल में ,
जब साथ मिले है टोली का।।
यह राग,द्वेष की दुनिया है ,
चहूँ और धुआं सा छाया है ।
प्रेम राग एक सच्चा है ,
जहाँ साथ मिले हमजोली का।।
क्यों नफरत करता है प्राणी,
क्यों मारकाट में डूब रहा ।
क्षणभंगुर सी है यह काया,
जीवन सफल मनमोजी का।।
हर क्षण न्योछावर कर दो ,
सच्चे जीवन के बदले तुम।
जहाँ आग धधकती हो मन में ,
क्या मर्म रह गया होली का ।।
होली का तो मर्म एक है ,
पावनता में मिल जाओ तुम।
जहाँ नीरक्षीर का भेद न हो ,
बस अर्थ यही है होली का ।।