...

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बादल
मन यही करता है काश मैं बादल बन जाऊँ,
पर्वत नदियों से दोस्ती कर आऊँ!

अर्श पर उडते उडते सूरज पर छा जाऊँ,
राहगीर और श्रमिकों को कुछ राहत के पल दे आऊँ!

किसानों का हमदर्द सखा बन जाऊँ,
जब हो जरूरत उनको मेरी तुरंत उनके पास आऊँ!

उमड घुमड कर मैं ऐसे बरस जाऊँ,
मोर पपिहे का मन हर्षाऊ!

नदियां झरने ताल तलैया सबको तृप्त करता जाऊँ,
हर जीव की प्यास बुझाने का साधन बन जाऊँ!

मस्त पवन से अठखेलियाँ करते एक डगर से दूसरे डगर उडता ही जाऊँ,
हर तरफ माहौल खुशनुमा बना आऊँ!

रूचि प जैन