...

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सुनहरा बन्धन
कागज और कलम सा साथ हमारा
बिन तेरे मैं व्यर्थ कहलाऊं साथ तेरे
रंग और अर्थ से भर जाऊ
बिन तेरे स्पर्श के मैं बस कोरा कागज रह जाऊ

तेरे लिखने से मैं खिल जाऊ
तेरे शब्दो से होता श्रृंगार मेरा
मैं भी निखर सा जाऊ
बिन तेरे बस कोरा कागज कहलाऊ

होता है हर परिस्थिति में मेल हमारा
गम हो या खुशी सब तू मुझपे ही
लिख के बताती, जो होता अपनी स्याही
से मुझ से जरूर बताती
कागज और कलम सा साथ हमारा
बिन तेरे बस कोरा कागज कहलाऊं

तेरा लिखा मुझे हर एक बात सिखाती
मुझको सब समझती बिन बोले
जो दिल में हो वो सब लिखती जाती
मुझको अपना सारा हाल बताती
बाट लेते हो हर गम को जो जो होता
सब लिखती जाती

भरोसे का मेरा सच्चा साथी जो दिल में
है बस मुझ पे लिख कर तुम बताती
कागज और कलम सा साथ हमारा
बिन तेरे बस कोरा कागज कहलाऊं

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