नेता और जनता
नेताओं को जनता को ठगने की अजीब सी है बीमारी,
अपना कीमती वोट देकर जनता पछताए बेचारी...
राजनीति लगती उतनी आसान नहीं
दिखती उतनी कठिन नहीं,
लोकतंत्र की हत्या अब शायद होती है वहीं...
समाज कंटक कुर्सी के हैं भूखे,
भले ही किसान के खेत पड़े रहें सूखे...
राजनीति के आगे किसी को कुछ दिखता नहीं,
चाहे तुम कुछ भी कर लो भ्रष्टाचार यहां रुकता नही...
जिन नेताओं को जनता ने चुना उन्हीं के,
कार्यालय पर टेबल के नीचे से ईमान बिकता
असहाय हुआ नागरिक...
अपना कीमती वोट देकर जनता पछताए बेचारी...
राजनीति लगती उतनी आसान नहीं
दिखती उतनी कठिन नहीं,
लोकतंत्र की हत्या अब शायद होती है वहीं...
समाज कंटक कुर्सी के हैं भूखे,
भले ही किसान के खेत पड़े रहें सूखे...
राजनीति के आगे किसी को कुछ दिखता नहीं,
चाहे तुम कुछ भी कर लो भ्रष्टाचार यहां रुकता नही...
जिन नेताओं को जनता ने चुना उन्हीं के,
कार्यालय पर टेबल के नीचे से ईमान बिकता
असहाय हुआ नागरिक...