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Diary
आँख को जाम लिखो ज़ुल्फ़ को बरसात लिखो
जिस से नाराज़ हो उस शख़्स की हर बात लिखो
जिस से मिल कर भी न मिलने की कसक बाक़ी है
उसी अन्जान शहंशाह की मुलाकात लिखो
जिस्म मस्जिद की तरह आँखें नमाज़ों जैसी
जब गुनाहों में इबादत थी वो दिन रात लिखो
इस कहानी का तो अंजाम वही है जो था
तुम जो चाहो तो मुहब्बत की शुरूआत लिखो
जब भी देखो उसे अपनी नज़र से देखो
कोई कुछ भी कहे तुम अपने ख़यालात लिखो #wasim .
जिस से नाराज़ हो उस शख़्स की हर बात लिखो
जिस से मिल कर भी न मिलने की कसक बाक़ी है
उसी अन्जान शहंशाह की मुलाकात लिखो
जिस्म मस्जिद की तरह आँखें नमाज़ों जैसी
जब गुनाहों में इबादत थी वो दिन रात लिखो
इस कहानी का तो अंजाम वही है जो था
तुम जो चाहो तो मुहब्बत की शुरूआत लिखो
जब भी देखो उसे अपनी नज़र से देखो
कोई कुछ भी कहे तुम अपने ख़यालात लिखो #wasim .
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