...

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जिंदगी की दासता
जिंदगी तेरे गम सहते सहते,
न जाने कब खुद से हार गये हैं हम,
गम जाती नही, खुशी आती नही,
शिकायत करूँ भी तो किससे, l
दर्द अपने ही जन्मों का फल है,
और कुछ भी तो नही,
दुःख छिपा के रो लेते थे
दर्द मे भी मुश्करा लेते थे
है यही मुश्किल की अब
जिया जाता नहीं,
गम अब और, सहा जाता नहीं,
अपने हिस्से के गम ही नहीं,
अपनो के हिस्से की भी हैं सहते हैं, जिंदगी छीन ही ले ऐ मेरे मालिक,
यूँ कतरा कतरा गम देने से, जिंदगी तेरे गम सहते सहते, अब हम
खुद से हार गये हैं।



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