मां , बहन , बहू , बेटी रूप है इसके अनेक
मां , बहन , बहू , बेटी
रूप है इसके अनेक
मेमोरी के फोल्डर सी होती है नारी
सबको सहेजे-समेटे हुए रहती है
दुख दर्द अपने ऊपर ले कर
खुशियां चारों ओर बिखेर देती है
गिले-शिकवे बहुत है दिल में उसके
पर दबा कर रखती है
शिकायतें लब पर ना आने देती है
मुस्कुराकर हर परिस्थिति से भिड़ जाती है
जब से इस जहां से रूबरू होती है
सुनती हैं वारे न्यारे हमेशा
हर और भेदभाव सहती है
फिर भी समाज रूपी जाली में सिमट जाती है
चक्की में पीसते अनाज के साथ
खुद के अरमानों को भी पीस देती है
सबका ख्याल रखना मजबूरी नहीं
आदत बना लेती
खैर इनकी शक्ति का अंदाजा
तू क्या लगाएगा 'प्रदीप'
कहीं सावित्रीबाई फूले बनकर
नए युग को रास्ता दिखा देती है
तो कहीं महादेवी वर्मा बनकर
साहित्य को संवारती हैं
समाज के नाम पर तो
कहीं मजहब के नाम पर टोका जाता है
कहते हैं अर्धांगिनी उन्हें
फिर भी बहुत से कामों से रोका जाता है
क्यों होता है भेदभाव इतना
स्त्री के साथ इस जहां में
जहन में हर बार सवाल ये आता है
फिर भी नारी रूप दिखाकर
वो सब सहन कर जाती है।
- Pradeep Raj
© Pradeep Raj Ucheniya
राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
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रूप है इसके अनेक
मेमोरी के फोल्डर सी होती है नारी
सबको सहेजे-समेटे हुए रहती है
दुख दर्द अपने ऊपर ले कर
खुशियां चारों ओर बिखेर देती है
गिले-शिकवे बहुत है दिल में उसके
पर दबा कर रखती है
शिकायतें लब पर ना आने देती है
मुस्कुराकर हर परिस्थिति से भिड़ जाती है
जब से इस जहां से रूबरू होती है
सुनती हैं वारे न्यारे हमेशा
हर और भेदभाव सहती है
फिर भी समाज रूपी जाली में सिमट जाती है
चक्की में पीसते अनाज के साथ
खुद के अरमानों को भी पीस देती है
सबका ख्याल रखना मजबूरी नहीं
आदत बना लेती
खैर इनकी शक्ति का अंदाजा
तू क्या लगाएगा 'प्रदीप'
कहीं सावित्रीबाई फूले बनकर
नए युग को रास्ता दिखा देती है
तो कहीं महादेवी वर्मा बनकर
साहित्य को संवारती हैं
समाज के नाम पर तो
कहीं मजहब के नाम पर टोका जाता है
कहते हैं अर्धांगिनी उन्हें
फिर भी बहुत से कामों से रोका जाता है
क्यों होता है भेदभाव इतना
स्त्री के साथ इस जहां में
जहन में हर बार सवाल ये आता है
फिर भी नारी रूप दिखाकर
वो सब सहन कर जाती है।
- Pradeep Raj
© Pradeep Raj Ucheniya
राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
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