जज़्बात और अल्फ़ाज़
जज़्बातों के दरिये में बहते बहते,
एक ख्याल पर ठहर सी गई थी मैं।
सोचा ख्याल अदा कर ही दूं,
दिल को हल्का आखिर कर ही दूं।
तो ख्याल कुछ ऐसा था की,
कल तक इंसान के दिल में ज़ज्बात थे,
कभी जुबानी बयां करती थी,
तो कभी डायरी के वह पन्ने,
जिसमें कभी कविता और गज़ल के रूप में,
तो कभी शायरी और खत के रूप में,
अल्फ़ाज़ों से होकर सीधे दिलों को छूती थी,
और चेहरे पर एक...
एक ख्याल पर ठहर सी गई थी मैं।
सोचा ख्याल अदा कर ही दूं,
दिल को हल्का आखिर कर ही दूं।
तो ख्याल कुछ ऐसा था की,
कल तक इंसान के दिल में ज़ज्बात थे,
कभी जुबानी बयां करती थी,
तो कभी डायरी के वह पन्ने,
जिसमें कभी कविता और गज़ल के रूप में,
तो कभी शायरी और खत के रूप में,
अल्फ़ाज़ों से होकर सीधे दिलों को छूती थी,
और चेहरे पर एक...