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बिडम्बना
बड़ी बिडम्बना है सोचो तो ये कैसी कहानी है,
पाप के बोझ कंधे में,पर दिखावे से भरी जिंदगानी है।
मत तलाशो सोने की खान वो भी मन से टूटा है,
नकली जेवर पहने हर शख्स , असली हीरे को लूटा है।
कतार में खड़े रहना ये तो बात पुरानी है,
हम जहां खड़े हैं,कतार वहीं से मानी जानी है।
जन-बल,धन-बल और बड़बोले की आज होते जय-जय कार है
धरा रह जाएगा कर्म आपका , दिखावे पर टिका ये संसार है।
अपने को साबित करने को इस हद तक मत्त इंसान है,
भूल गए द्रोणाचार्य को मूर्ति बनकर भी गढ़े एकलव्य महान है।