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मोहब्बत


मोहब्बत बहुत तकलीफ़ - देह होती है। जब मैं ये ग़ौर करती हूँ के वो मुझे ग़ौर से नही देखता। उसकी आधी तवज्जोह को मुकम्मल तवज्जोह तज्वीज़ कर ख़ुद को दिलासा देना पड़ता है। उसका बँटा हुआ वक़्त जब - जब मेरी झोली में गिरा तो उसे तबर्रुक मान कर आँचल से बांधा है मैंने। अगर वो कभी मिलने आए तो उसकी...