...

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गांव या शहर
फूलों की बगिया में बचपन
बीत रहा था खुशियों से
फिर न जाने कौन सी ख्वाहिश
उपजी मन में तेजी से,

खुशियों भरे इस मन को जिसने
मानो यूं झकझोड़ दिया
फूलों की बगिया से जाते
राही को क्यों मोड़ दिया ?

फूलों की मुस्कान जो मन को
पास जो अपने रोज बुलाती
अनदेखा उनको करके जो
पता नहीं किस राह मैं जाती

न जाने मैं किस तलाश में
अपनों से यूं दूर जो आकर
किस सुुगंध की अब तलाश ने
मृगतृष्णा सी प्यास जगा कर

भटकाया जो यहां वहां है
सुनसान अब सारा जहां है
फूलों की प्यारी मुस्काने है
न जाने अब खोई कहां है

कहने को तो सब कुछ है पर,
पूरा कुछ भी नहीं लगे अब
सूरज , चंदा वो ही हैं पर,
मन को प्यारे नहीं लगे अब

गांव छोड़ जो शहर जमीन पर,
डेरा अपना जमा लिया है
अमृत को छोड़ा है पीछे,
नशा धतूरा खा लिया है

गांव ही प्यारा मुझको तो अब
बचपन वही है जीना फिर से
इस जन्म में तो ना होगा
जन्म वही अब लेना फिर से

सब कुछ है शहरों में फिर भी
कमी है लगती कहीं तो कोई
चका- चौंध ना भावे मुझको
लौटा दो वह बचपन कोई ....




© Munni Joshi