...

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अगर तुम्हें कभी फ़ुर्सत हो तो....
अस्त-व्यस्त रहता है मेरा कमरा
हर चीज़ बेतरतीबी से इधर उधर
पड़ी रहती है और...

और,
मैं कुछ भी
समेटने की बनस्पत
बस बैठा रहता हूँ
कंप्यूटर पर
तुम्हारी तस्वीर निहारते हुए
जिस कप में तुम चाय पिया करती थी उसी
कप में मैं भी आजकल चाय पिया करता हूँ

सुनो,
कमरा चाहता है सिमटना
और मैं भी...

अगर तुम्हें कभी फ़ुर्सत हो तो....
© तिरस्कृत