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"कैसा ये प्रेम!"
यादों से घिरे फिर भी तन्हा
मिलन की आस में तड़पते,
कैसा ये प्रेम!
बहती झरती अँखियाँ
दीदार को भी तेरे तसरते,
कैसा ये प्रेम!
हसरतें नहीं तुम्हें पाने की
पल भर के लिए अपना कहने को मचलते,
कैसा ये प्रेम!
फासले भी एक दूजे से नजदीकियाँ करते
रुह में एकदूजे के पिघलते,
कैसा ये प्रेम!
© सांवली (Reena)
मिलन की आस में तड़पते,
कैसा ये प्रेम!
बहती झरती अँखियाँ
दीदार को भी तेरे तसरते,
कैसा ये प्रेम!
हसरतें नहीं तुम्हें पाने की
पल भर के लिए अपना कहने को मचलते,
कैसा ये प्रेम!
फासले भी एक दूजे से नजदीकियाँ करते
रुह में एकदूजे के पिघलते,
कैसा ये प्रेम!
© सांवली (Reena)
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