...

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मैं जो
मैं जो था ना वो,
वो तो तेरा था ना ,
मगर इतनी सी नहीं है,
कहीं तू हवा बनकर उड़ चली ,
तो मैं भी था तुझमें शामिल ,
मध्यम सी हवाएं ,
और साथ में तू गगन बन उड़ चली,
फिर भी मैं अधूरा था ना,
हर घड़ी में -
सिर्फ तेरा था ना,
फिर भी काफी न था,
था प्यार मगर ,
फिर जिस्म ना भी था तो क्या?
वो वादे क्या,
वो कसमें क्या,
वो बूंद बनकर मुझपे आ भी गई तो क्या,
हाथों में हाथ था मगर,
मगर सांसे कहा तू कहां,
वो रात भी थी खूबसूरत ,
मगर मेरे दिल की बातें भी क्या,
तिनका तिनका पूछा रहा ,
तू कहां -तू कहा,
बादल आवाज कर बोले,
मेरी कहानी में तू भी -
मेरी आवाज़ बन कर बोल,
मैं यहां मैं यहां,
सपना था एक ,
मगर वो भी टूटा इस कद्र की क्या कहना,
मैं जब कलम था तो तू मेरी स्याही बन चली,
तोड़ा बर्तन ,तोड़ा घर
मगर ना तोड़ दिल वो कांच का,
मैं जो एक सूखा बगीचा ,
उस बगीचे का सारांश भी तू थी,
वो जो अल्फाज है जाम मोहब्बत का,
बस हम हैं मजि‌ल है और है फरियादे उस मनचली ,
मना था मैं जो काबिल ना,
तो फिर क्या फरमान लगाया मोहब्बत_ए _नाम का,
मैं जो था तेरे नाम का,
जब मैं नहीं और सब हो,
महफ़िले मोहब्बत के कफ़न ताज में हमारा नाम हो,
मैं जो था अकेला ,
नहीं था रात का पता,
और तेरा साथ है
तेरे नाम से मशहूर,
मेरे नाम से पहले तेरा नाम हो,
और तेरा साथ है,
फिर मैं भी वाचिक बन कर,
जगमग कर रोशनी देता फिरूं,
और फिर एक लम्हा,
ऐसा आए जब,
और फिर हम जुदा हो जाए,
तो क्या।




#अपार_प्रेम