एक बार फिर दिए जलाने को मन करता है । " कलम को विराम देते हुए मुझे लगा कि शायद इन में जंग लग गई हो तो आज मन के उद्गार को व्यक्त करके शब्दों की शक्ल दे रहा हूं । जो शायद कविता का रूप ले लें तो प्रिय दोस्तों एक बार फिर हाजिर है आपका उढ़ता पंछी,अपनी रचना लेकर एक बार फिर दिए जलाने को मन करता है ।"
चहुँ ओर अंधियारा है,
सूना हर गलियारा है,
अब ना पेट्रोल के कव्वे की कांव-कांव है,
और ना ही विराट वृक्षों की छांव है,
फिर भी रे मन अधीर है यकायक यूं कि आज फिर से एक बार दिए जलाने का मन करता है।।
नदियों से काला रंग गायब है,
हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरिजाघर से झलकता बस एक ही रब है,
ना वह राहों पर उड़ती हुई धूल की आंधी है,
और ना ही लगातार चक्की के पाटों में पिसने की व्याधि है,
मन अधीर नहीं जाने क्यों यकायक आज फिर से एक बार दिए जलाने का मन करता है।।
सरहदों पर ना गोली की धाय धाय और कड़वी यादें हैं,
ना ही घर समय पर आऊंगा के झूठे वादे हैं,
ना सुबह के सर्दी में धुएँ का मिश्रण है, और ना किसी विवाह उत्सव में जाने का निमंत्रण है।
मन अधीर नहीं जाने क्यों यकायक आज फिर से एक बार दिए जलाने का मन करता है।।
ना किसी अपने का रूखापन है,
निश्चल प्रकाश जैसा विकार मुक्त हर मन है,
ना ही...
सूना हर गलियारा है,
अब ना पेट्रोल के कव्वे की कांव-कांव है,
और ना ही विराट वृक्षों की छांव है,
फिर भी रे मन अधीर है यकायक यूं कि आज फिर से एक बार दिए जलाने का मन करता है।।
नदियों से काला रंग गायब है,
हर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरिजाघर से झलकता बस एक ही रब है,
ना वह राहों पर उड़ती हुई धूल की आंधी है,
और ना ही लगातार चक्की के पाटों में पिसने की व्याधि है,
मन अधीर नहीं जाने क्यों यकायक आज फिर से एक बार दिए जलाने का मन करता है।।
सरहदों पर ना गोली की धाय धाय और कड़वी यादें हैं,
ना ही घर समय पर आऊंगा के झूठे वादे हैं,
ना सुबह के सर्दी में धुएँ का मिश्रण है, और ना किसी विवाह उत्सव में जाने का निमंत्रण है।
मन अधीर नहीं जाने क्यों यकायक आज फिर से एक बार दिए जलाने का मन करता है।।
ना किसी अपने का रूखापन है,
निश्चल प्रकाश जैसा विकार मुक्त हर मन है,
ना ही...