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इश्क़ की चाह में
दर दर भटकता रहा तू इश्क़ की चाह में-2
एक बार आइने में खूद को देख लेता,
खुद से मोहबत करना सीख लेता
तो यू ना भटकता अनचाही राह में।
दर दर भटकता रहा तू इश्क़ की चाह में।
खूशियाँ खरीदने निकला था तू
पर ऐ नादान परिंदे
खूशियाँ नहीं बिकती भरे बाजारों में
इश्क़ की कोई पहचान नहीं
इससे तू भी अनजान नहीं कि खुद से इश्क़ आसां नहीं
भूल गया तू खुद को इस बडे शहर के शोर में
सिमट कर रह गयी सारी ख़्वाहिशें किसी एक छोर में।
दर दर भटकता रहा तू इश्क़ की चाह में।
--- priyanka phullera
एक बार आइने में खूद को देख लेता,
खुद से मोहबत करना सीख लेता
तो यू ना भटकता अनचाही राह में।
दर दर भटकता रहा तू इश्क़ की चाह में।
खूशियाँ खरीदने निकला था तू
पर ऐ नादान परिंदे
खूशियाँ नहीं बिकती भरे बाजारों में
इश्क़ की कोई पहचान नहीं
इससे तू भी अनजान नहीं कि खुद से इश्क़ आसां नहीं
भूल गया तू खुद को इस बडे शहर के शोर में
सिमट कर रह गयी सारी ख़्वाहिशें किसी एक छोर में।
दर दर भटकता रहा तू इश्क़ की चाह में।
--- priyanka phullera
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