...

5 views

आम आदमी
मैं हूं आम आदमी
आम ज़िंदगी जीता हूं
पीठ की थकान में
किराए के मकान में

औकात से अधिक
न जानता हूं
दो वक्त की रोटी से अधिक
न मांगता हूं

रुकने का कोई बहाना नहीं
टिकने का कोई ठिकाना नहीं
भरोसे लायक जमाना नहीं
अपने दुख को मुझे दिखाना नहीं

मैं हूं आम आदमी
आम ज़िंदगी जीता हूं
अपने दुख दर्द को दबा कर
चलता हूं सर को झुका कर

हक से ज्यादा की सिर्फ
चाहत रखता हूं, हिम्मत नहीं
आगे तो सिर्फ सपनो में भड़ा हूं
वास्तविकता में नहीं

अपनी ही दुनिया में मग्न हूं
बाहर से मेरा कोई वास्ता नहीं है
एक...