...

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आहूत कर दे तू
जतन से बोलना
संभल कर चलना
भय से सकुचाना और
स्त्री होने का फ़र्ज़ निभाना,
अपनी आकांक्षाओं को
तह कर- कर के करीने से
छुपा कर रखना, सबकी माँग
पूर्ति करने की दौड़-भाग ,
फिर भी तानों और सदमों के
नुकीले तीर सहना,
धसक जाने दे महल रिवाज़ों का
जिसका कोई प्रयोजन नहीं
उन रस्मों की बोलती बंद कर दे
दूर-दूर तक बिछा अपने एहसास, सोख ले प्राकृतिक सांस
आहूत कर दे सारी बंदिशें आज
आहूत कर दे त्याग की देवी
का सम्मानित ख़िताब,
जी ले इठलाकर, स्वयं को अपनाकर, आहूति दे दे ताउम्र की
प्रतीक्षा को, प्रशंसित प्रतिक्रिया को
देख लेने दे विस्मय से जग की
पुरातन निगाहों को
सृष्टि का आरम्भ तू सृजन कर ख़ुद का..
--Nivedita