...

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अनसुलझी रुह
हाँ आज भी उसे याद करता हूँ..
दिल कि बाते हजार करता हूँ...
कहिं मिल ना जाये मेरी रूह से वोह
उसकि यादो का दिदार भी करता हूँ...

मिलने के ख्वाबो से अकसर मे लडता हूँ..
दिखने कि चाह पल पल मे बुनता हूँ...
बदल ना जाये मेरे यकीन से वोह
गमो कि बारिश मे अकेला हि जलता हूँ...